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अजीब दास्ताँ है ये
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंजिलें है कौन सी
न वो समझ सके न हम
ये रौशनी के साथ क्यूँ
धुंआ उठा चिराग से
ये ख्वाब देखती हूँ मैं
के जग पड़ी हूँ ख्वाब से
अजीब..
मुबारके तुम्हें के तुम
किसी के नूर हो गए
किसी के इतने पास हो
के सबसे दूर हो गए
अजीब..
किसी का प्यार ले के तुम
नया जहां बसाओगे
ये शाम जब भी आएगी
तुम हमको याद आओगे
अजीब..
Другие названия этого текста
- Lata Mangeshkar - अजीब दास्ताँ है ये (0)
- Lata Mangeshkar - Ajeeb Dastaan hai yeh (0)
- Lata Mangeshkar - Ajeeb Dastaan hai Ye (0)
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